Friday, July 31, 2009

"खबर छापता है , छुपाता नहीं"

' खबर छुपाता है छापता नहीं '

बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद या चक्कू बंदर के हाथ ये दो कहावत सबने सुनी है शायद कभी आपने ऐसा बंदर कभी देखा नहीं होगा | कलम के प्रहरी अगर वो बन बैठें जिन्हें न तो पत्रकारिता अलफ बे भी नहीं आता तो उनसे लोगों की क्या अपेक्षा हो सकती है | ऐसा ही कुछ माजरा है हरियाणा प्रदेश के अम्बाला जिला से प्रकाशित एक सांध्य समाचार पत्र का और उसके बंदर मालिक का | कहा जता है जिसका काम उसी को साजे और करे तो डंका बाजे | हरियाणा का अम्बाला जिला आज दुनिया के ग्लोबल मानचित्र पर अपनी पहचान का भले ही मोहताज नहीं है | यह सब जानते हैं कि अम्बाला विश्व भर में वैज्ञानिक उपकरणों और मिक्सी उद्योगिक नगर के नाम से मशहूर है | अब इसी शहर का एक बंदर भी विख्यात हो चला है | इसके भी हाथ में एक बुद्धिजीवी की अनजानी भूलवश एक सांध्य पत्रका निकालने तरकीब लग गई | अब वह बुद्धिजीवी और उसके शिष्य व शहर के दिगर नामानिगार बेहद उसके आतंक से परेशान और विचलित हैं | आप हैरान हो रहे होंगे कि आख़िर यह कैसा बंदर है ? जिसके आतंक से सभी नामानिगार आतंकित हैं और फ़िर क्यों ? यह इंसान के रूप में एक ऐसा बंदर है जिसे न अदरक का पता है और न ही अदरक के स्वाद का | अब उसके हाथ में बुद्धिजीवी की छोटी सी भूल के कारण कई लोगों को उसका खाम्याज़ा भुगतना पड़ रहा है | यह बंदर अब इतना शातिर है कि अपने स्वार्थ के लिए आपको उल्लू बनाकर कुछ भी कर सकता है | अम्बाला के कई जिला मजिस्ट्रेट और कई अधिकारी कर्मचारी भी परेशान हैं | उसके हाथ में आई कलम लोगों को चाकू की भांति नज़र आती है और इसके कारण भयभीत भी हैं | हालांकि वो इसकदर इस कलम का दुरपयोग कर रहा है कि डर के मारे उसके ख़िलाफ़ कोई बोलने को तयार नही | छात्रों की मदद के नाम पर जिस तरहां से वो काम लेता है वेह भी एक शोषण कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी | किसी की भी इज्जत्मान मरियादा से खिलवाड़ करना उसका शौंक बन गया है | इस पागल बंदर कई लोग बिल्ली समझ कर उसके गले में घंटी बाँधने भी डरते हैं | यह शातिर बंदर इतना शातिर है कि आपके ख़िलाफ़ अपने सांध्य में खबर उलटी सीधी खबर छापने के बाद चुपके से अकेले में आपसे माफी भी मांग लेता है | अब भला आप ही सोचिय कि उसके पागलपन से न तो कोई ज्ह्गादा लेना चाहता है और नही उसको कानूनी तरीके से सबक सिखाना चाहता है । तो आख़िर उसका इलाज क्या किया जाए ? लेकिन् वो अपने सांध्य अखबार में यह लिखना नहीं भूलता "खबरें छपता है , छुपता नहीं " लेकिन यहाँ के सभी बुद्धिजीवी मानते हैं कि वो सब छुपता है सिवाय जनहित में स्वच्छ तरीके से छापने के बासी खबरों और दुसरे बड़े समाचार पत्रों के सम्पादकीय व संचार चुराकर छापने के | बुधीजिवी बंदर या आतंकी यह कैसा लगा ? और इसका इलाज आप भी बताएं |





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