Tuesday, November 3, 2020
बेबाक़ बोल: लोकतंत्र के भरोसे की राजनीतिक हत्या
Friday, October 30, 2020
कुमारी सैलजा पर हमले के मामले में FIR दर्ज, शिकायत में ये नाम हैं शामिल. प्रभारी विवेक बंसल के साथ हुई बदतमीजी और धक्कामुक्की को लेकर पुलिस थाने में शिकायत दर्ज करवाई गई
Sunday, August 9, 2009
बीटेक में एडमिशन के लिए ‘जज’ का फोन
चंडीगढ़. ‘मैं जज बोल रहा हूं, इस छात्र की एडमिशन के लिए मेरी रिकमेंडेशन है। तुरंत एडमिशन कर लो, ठीक है..।’ फोन पर ये अल्फाज बोलने वाले की तलाश चंडीगढ़ पुलिस कर रही है। वजह है जज के नाम पर इंजीनियरिंग कॉलेज प्रशासन पर दबाव डालकर एडमिशन कराने की कोशिश।
अंबाला जिले के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में शुक्रवार सुबह बीटेक में एडमिशन के लिए एक छात्र पहुंचा। उसने जज का नाम लेते हुए एडमिशन के लिए दबाव बनाया और कॉलेज के नंबर पर फोन भी करवाया। इस फोन में किसी ने जज बनकर कॉलेज प्रशासन से बात की और छात्र का एडमिशन करने को कहा। इस फोन के थोड़ी देर बाद कॉलेज प्रशासन ने जज साहब से संपर्क कर बताना चाहा कि एडमिशन हो जाएगी, तो सारा भांडा फूटा। जज साहब ने हैरान होते हुए कॉलेज प्रशासन को स्पष्ट किया कि उन्होंने किसी छात्र के दाखिले के लिए न ही कोई सिफारिश की है और न ही कोई फोन किया है। अपने नाम का इस तरह मिसयूज होना जज साहब को नागवार गुजरा, सो शुक्रवार शाम करीब चार बजे उन्होंने पुलिस हेडक्वार्टर में फोन करके एसएसपी सुधांशु शेखर श्रीवास्तव को बुलाया। जज ने एसएसपी से कहा कि उनके नाम का मिसयूज (इम्पसरेनेशन) करने वालों के खिलाफ तुरंत कार्रवाई करें। इसके बाद एसएसपी वापस आए और चंडीगढ़ पुलिस की स्पेशल टीम आरोपियों की तलाश में जुट गई। देर रात तक पुलिस ने वह फोन नंबर हासिल कर लिया था, जिससे कॉलेज में फोन किया गया। जिस छात्र के दाखिले लिए दबाव बनाया जा रहा था, उसका भी पता चल गया है। देर रात थाना 36 पुलिस और क्राइमब्रांच की टीम आरोपियों की तलाश में छापामारी कर रही थी। अभी सारे मसले की जांच की जा रही है और आरोपियों को पकड़ा नहीं गया। इसलिए हम कुछ भी नहीं बता सकते।Saturday, August 8, 2009
बीमार है नकली दवा का निगरानी तंत्र ......?
करोडों लोगों की जिन्दगी से खिलवाड़.....!
जीवन रक्षक दवायों में नकली काला कारोबार ....?
जरा सोचिय जो आप ले रहे हैं क्या वो सही है ......?
सेना में , सरकारी संस्थायों में दी जाने वाली दवाईओं में भी गोरख धंधा.....
हरियाणा में नकली दवा के कारोबार ने एक संगठित अपराध का रूप ले लिया है। बीते दिनों अम्बाला, फरीदाबाद, गुडगाँव,हिस्सार के कई जिलों में नकली दवाएं बिकती पकड़ी गयी हैं। अनुमान के मुताबिक यह कारोबार 50 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया है।
राज्य में फुटकर और थोक मिलाकर कुल 95 हजार दवा की दुकानें हैं। दवा के पूरे व्यापार पर सीधे तौर पर नजर रखने के लिए अपर्याप्त ड्रग इंस्पेक्टर हैं। ऐसे में नकली दवा की निगरानी कितनी पुख्ता तरीके से हो रही होगी इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।
केंद्र सरकार द्वारा 2003 में तय मानक के अनुसार तीन सौ दवा की दुकानों और बीस ड्रग फार्मेसी पर नजर रखने के लिए एक ड्रग इंस्पेक्टर औषधि निरीक्षक तैनात होगा। इस हिसाब से प्रदेश की 95 हजार दवा की दुकानों और छह सौ दवा फैक्ट्रियों की निगरानी के लिए कम से कम तीन सौ अधिक औषधि निरीक्षकों की आवश्यकता है। इसके सापेक्ष राज्य के बीस जिलों में मात्र तीस ड्रग इंस्पेक्टर तैनात हैं। आधे जिलों में ड्रग इंस्पेक्टर के पद खाली हैं। ज्यादातर ड्रग इंस्पेक्टरों को कम से कम दो जिलों का काम देखना पड़ रहा है।
बेअसर एफडीए
नकली दवा की रोकथाम के लिए गठित 'फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन [एफडीए]' विभाग में कई आला अधिकारियों के पद भी रिक्त चल रहे है। औषधि निरीक्षक को हर माह कम से कम पन्द्रह दवाओं के नमूने भरने के निर्देश हैं। किस निरीक्षक ने किन दवाओं के कितने नमूने लिये और तय सीमा से कम नमूने जांच के लिए भेजने वाले ड्रग इंस्पेक्टर पर क्या कार्रवाई की गयी, इसका भी कोई ब्यौरा विभाग के पास नहीं हैं।
उधार लेकर परीक्षण को भेजी जा रही दवाएं
नियमानुसार ड्रग इंस्पेक्टर दुकानों से दवाएं खरीदकर उन्हें परीक्षण के लिए भेजेगा। विभाग के पास इसके लिए बजट तो है लेकिन उसमें भी भ्रष्टाचार ही फैला है । एक ड्रग इंस्पेक्टर बताते हैं कि मजबूरी में दुकान से उधार पर दवाएं लेकर उसे जांच को भेजना पड़ता है। यही कारण है कि बीते एक वर्ष के दौरान राजकीय जन विश्लेषक प्रयोगशाला को जांच के लिए भेजी गयीं करीब आठ सौ दवाओं में एक भी महंगी एंटीबायोटिक, सिरप, वैक्सीन व इंजेक्शन शामिल नहीं है।
महानिदेशक का कहना है
स्वास्थ्य महानिदेशक ने बताया कि सभी सीएमओ को नकली दवा की बिक्री पर नजर रखने के निर्देश हैं। इसकी सूचना मिलते ही तुरंत दवाएं जांच के लिए प्रयोगशाला भेजी जाये। उधर एफडीए विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक औषधि निरीक्षक के रिक्त पदों को भरने के लिए लोक सेवा आयोग को अधियाचन भेजा गया है। इसी प्रकार सुसंगत सेवा नियमावली में भी संशोधन की कार्यवाही चल रही है ताकि प्रोन्नति के पदों को भरा जा सके।
Friday, August 7, 2009
रेल में आप ऐसा खाना खा रहे हैं !!!
दोपहर के वक्त हमने इस किचन में पहुंच कर देखा कि फर्श पर पानी व गंदगी फैली थी। कहीं चिकन के टुकड़े, तो कहीं चप्पलें पड़ी थीं। गर्मी व उमस के कारण खाना बना रहे कर्मचारी पसीने से नहाए हुए थे। ऐसे में साफ-सुथरे माहौल में पौष्टिक खाना तैयार करने का दावा कितना सही है, इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।
700 यात्रियों का खाना
दो कमरों वाले इस किचन में रोजाना औसतन 700 यात्रियों के लिए खाना तैयार व पैक होता है। उल्लेखनीय है कि खाना बनाने की प्रक्रिया में तो साफ-सफाई का ख्याल नहीं रखा जाता, लेकिन पैकिंग में पूरी सावधानी बरती जाती है। शायद किचन का ठेकेदार मानता है कि अफसर और यात्री किचन देखने तो आते नहीं, वे तो केवल पैकिंग देखकर ही संतुष्ट हो जाते हैं। आईआरसीटीसी ने किचन का ठेका एक ठेकेदार को दे रखा है।
अक्सर रहती है यात्रियों को शिकायत
शताब्दी एक्सप्रेस में सर्व किए जाने वाले फूड को लेकर यात्रियों को अक्सर शिकायतें रहती हैं। इस बात को अंबाला मंडल भी स्वीकार करता है, लेकिन इस मुद्दे को आईआरसीटीसी के अधिकारियों से बात कर सुलझाने की बात कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं। कुछ समय पहले डॉ। संदीप छत्रपाल के माता-पिता शताब्दी का खाना खाकर बीमार हो गए थे। यही नहीं बीते वर्ष चंडीगढ़ शहर के चीफ इंजीनियर रह चुके वीके भारद्वाज अपनी पत्नी के साथ शताब्दी में नई दिल्ली जा रहे थे, तो कटलेट में मौजूद लोहे की तार उनकी पत्नी के गले में फंस गई थी, जिसके चलते उन्हें अस्पताल में भी दाखिल होना पड़ा था |
किचन का जल्द ही रेनोवेशन कराया जाएगा। खाने की गुणवत्ता जांचने के लिए 20 से 25 दिन में एक बार पीएफए टेस्ट होता है। जहां तक गंदगी का सवाल है तो इसे चेक कराएंगे।
अनीत दुल्लत, ग्रुप जनरल मैनेजर, आईआरसीटीसी
आईएसो से ले चुके रेलवे के उस सर्टिफिकेट पर भी संदेह के सवालों ने घेर लिया है जो अब अपनी आंखों देखने के बाद कोई यकीं नहीं कर सकता , लेकिन अभी रेलवे के अधिकारी किचन की गंदगी की जांच की ही बात कह रहे हैं | आईआरसीटीसी की इस लापरवाही के लिए आख़िर कौन जिम्मेवार है ? और कौन इस पर करवाई करेगा ? जो लोग रेलवे की इस किचन का खाना खाने के बाद आप बीती सुनाते हैं उन शिकायतों पर कौन अमल करेगा ?
Friday, July 31, 2009
"खबर छापता है , छुपाता नहीं"
बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद या चक्कू बंदर के हाथ ये दो कहावत सबने सुनी है शायद कभी आपने ऐसा बंदर कभी देखा नहीं होगा | कलम के प्रहरी अगर वो बन बैठें जिन्हें न तो पत्रकारिता अलफ बे भी नहीं आता तो उनसे लोगों की क्या अपेक्षा हो सकती है | ऐसा ही कुछ माजरा है हरियाणा प्रदेश के अम्बाला जिला से प्रकाशित एक सांध्य समाचार पत्र का और उसके बंदर मालिक का | कहा जता है जिसका काम उसी को साजे और करे तो डंका बाजे | हरियाणा का अम्बाला जिला आज दुनिया के ग्लोबल मानचित्र पर अपनी पहचान का भले ही मोहताज नहीं है | यह सब जानते हैं कि अम्बाला विश्व भर में वैज्ञानिक उपकरणों और मिक्सी उद्योगिक नगर के नाम से मशहूर है | अब इसी शहर का एक बंदर भी विख्यात हो चला है | इसके भी हाथ में एक बुद्धिजीवी की अनजानी भूलवश एक सांध्य पत्रका निकालने तरकीब लग गई | अब वह बुद्धिजीवी और उसके शिष्य व शहर के दिगर नामानिगार बेहद उसके आतंक से परेशान और विचलित हैं | आप हैरान हो रहे होंगे कि आख़िर यह कैसा बंदर है ? जिसके आतंक से सभी नामानिगार आतंकित हैं और फ़िर क्यों ? यह इंसान के रूप में एक ऐसा बंदर है जिसे न अदरक का पता है और न ही अदरक के स्वाद का | अब उसके हाथ में बुद्धिजीवी की छोटी सी भूल के कारण कई लोगों को उसका खाम्याज़ा भुगतना पड़ रहा है | यह बंदर अब इतना शातिर है कि अपने स्वार्थ के लिए आपको उल्लू बनाकर कुछ भी कर सकता है | अम्बाला के कई जिला मजिस्ट्रेट और कई अधिकारी कर्मचारी भी परेशान हैं | उसके हाथ में आई कलम लोगों को चाकू की भांति नज़र आती है और इसके कारण भयभीत भी हैं | हालांकि वो इसकदर इस कलम का दुरपयोग कर रहा है कि डर के मारे उसके ख़िलाफ़ कोई बोलने को तयार नही | छात्रों की मदद के नाम पर जिस तरहां से वो काम लेता है वेह भी एक शोषण कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी | किसी की भी इज्जत्मान मरियादा से खिलवाड़ करना उसका शौंक बन गया है | इस पागल बंदर कई लोग बिल्ली समझ कर उसके गले में घंटी बाँधने भी डरते हैं | यह शातिर बंदर इतना शातिर है कि आपके ख़िलाफ़ अपने सांध्य में खबर उलटी सीधी खबर छापने के बाद चुपके से अकेले में आपसे माफी भी मांग लेता है | अब भला आप ही सोचिय कि उसके पागलपन से न तो कोई ज्ह्गादा लेना चाहता है और नही उसको कानूनी तरीके से सबक सिखाना चाहता है । तो आख़िर उसका इलाज क्या किया जाए ? लेकिन् वो अपने सांध्य अखबार में यह लिखना नहीं भूलता "खबरें छपता है , छुपता नहीं " लेकिन यहाँ के सभी बुद्धिजीवी मानते हैं कि वो सब छुपता है सिवाय जनहित में स्वच्छ तरीके से छापने के बासी खबरों और दुसरे बड़े समाचार पत्रों के सम्पादकीय व संचार चुराकर छापने के | बुधीजिवी बंदर या आतंकी यह कैसा लगा ? और इसका इलाज आप भी बताएं |